IDA में बड़ा गड़ बड़ झाला .... इंदौर विकास प्राधिकरण में शहर के धन की हो रही बर्बादी

                                  

                          IDA 
में बड़ा गड़ बड़ झाला                  

          इंदौर विकास प्राधिकरण में शहर के धन की हो रही बर्बादी            


इंदौर।  शहर के विकास के लिए कार्य करने वाले इंदौर विकास प्राधिकरण यानि (आईडीए) में बैठे जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही कहें या फिर उनकी मनमानी कि जिस शहर का तेजी से विकास करना चाहिए उस शहर के धन का व्यर्थ उपयोग किया जा रहा है। दरअसल यहां पर आलम यह है कि एक काम के दो नियम  यानि कि दोहरी नीति चल रही है। इस गड़बड़झाले के कारण जहां आईडीए का ही नुकसान हो रहा है, वहीं रुपयों की जमकर बर्बादी हो रही है। वहीं कुछ अधिकारी तो ऐसे हैं, जो अपने मूल काम को छोड़कर अन्य कामों में अपनी रूचि दिखाते हैं। ऐसे अधिकारियों पर नकेल कसने की आवश्यकता तो महसूस की जा रही है, लेकिन इन पर कार्रवाई कोई नहीं करता।

 दरअसल प्राधिकरण की विभिन्न योजनाओं में कंसलटेंसी के माध्यम से कार्य कराए जा रहे हैं, जिसका करोड़ों रुपए का भुगतान प्राधिकरण द्वारा कंसलटेंसी कंपनी को किया जा रहा है।  जिस विभाग के अधिकारियों की कमी होने एवं ठीक ढंग से देखरेख नहीं होने पर इस तरह की व्यवस्था की जा रही है, परंतु विभाग के 6 कार्यपालन यंत्री एवं 3 मुख्य अभियंता अपनी सेवाएं दे रहे हैं, जो नियम विरूद्ध हैं।

वर्षों से खाली है मुख्य अभियंता का पद

इंदौर विकास प्राधिकरण में मुख्य अभियंता का स्थायी पद 1998 से खाली पड़ा है। इस पद पर नियुक्ति यहां के कार्यकारी अभियंता नहीं होने देते एवं प्रभारी एवं जूनियर सीनियर झगड़े में और गुटबाजी खत्म करने हेतु बड़े अधिकारी ने एवं कुछ अधिकारी तो शासन से अस्थायी उच्च पद का प्रभार सांठ-गांठ कर ले लिए हैं, जिसकी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि प्राधिकरण में कोई योजना भूमि नहीं है और जो प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है वह पुराने हैं, अत: इंजीनियर का अतिरिक्त स्टाफ की आवश्यकता एवं तीन मुख्य अभियंता को प्रभार देकर नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है एवं शहर  का पैसा इनकी सैलरी आदि में व्यर्थ खर्च हो रहा है।

करोड़ों रुपए का हो सकता है लाभ     सूत्र बताते हैं कि प्राधिकरण में काम कम होने से यहां उपयंत्री एवं प्रभारी सहायक यंत्री द्वारा संपदा शाखा एवं अन्य शाखा में काम किया जा रहा है, जबकि उक्त शाखाओं में लिपिक वर्ग व्यक्ति को इंजीनियर की जो सैलरी दी जा रही है। उसमें तीन व्यक्तियों की नियुक्ति कार्य करवाया जा सकता है। नई लिपिक की नियुक्ति करने पर प्राधिकरण को सालभर में करोड़ों रुपए का लाभ हो सकता है, लेकिन अधिकारी इस ओर ध्यान न देकर कर्मचारियों की कमी  कि पूर्ति हेतू सिक्यूरिटी गार्ड को औजार की तरह एवं कमाई का जरिया बना रखा है।

प्रोजेक्ट छोड़े भगवान भरोसे

प्राधिकरण में जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) का काम जनता की समस्या सुनना एवं निराकरण हेतु संबंधित अधिकारी के पास भेजना होता है, लेकिन प्राधिकरण में पीआरओ इस तरह के कार्य न करते हुए अधिकारी-अधिकारी कैबिन में दिनभर बैठकर गप्पे लड़ते रहते हैं ना तो खुद काम करते ना अधिकारियों को करने देते हैं। सबसे अहम बात उनके अधिकारियों से संबंधों का लाभ  लेकर शहर के चार-पांच प्रोजेक्ट पर अपनी नियुक्ति करवाकर  दिनभर प्राधिकरण भवन में बैठे रहते एवं प्रोजेक्टों को भगवान भरोसे छोड़ रखा है।

नहीं देते ध्यान

अधिकारी इस ओर ध्यान नहीं देते हैं। सिर्फ अधिकारी अपने हिसाब से प्राधिकरण चला रहे हैं। इस व्यवस्था को सुधारने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।  यहां स्थायी पीआरओ एवं योजनाओं में सहायक यंत्री की पोस्टिंग की जाए तो बात बन सकती है और प्रोजेक्टर भी तेजी से पूरे हो सकते हैं।